“उत्तम तप निर्वांछित पाले, सो नर करम-शत्रु को टाले”
• पर्वाधिराज पर्युषण दसलक्षण पर्व के सातवें दिन जिनालयों में हुई उत्तम तप धर्म की पूजा अर्चना
• जैन श्रावक कर रहें हैं एकासन, उपवास व्रत की कठिन साधना
• मन मे उठी इच्छाओं को निरोध करना सम्यक तप है: मुनिश्री अविचलसागर
झांसी:- नगर के समस्त जैन मन्दिरों में पर्वाधिराज पर्युषण दसलक्षण पर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म की पूजा अर्चना की गई। मेडिकल कॉलेज गेट नं 3 के आगे निर्माणाधीन भगवान महावीर महातीर्थ में विराजमान मुनिश्री अविचलसागरजी महाराज के मंगल सान्निध्य में प्रातः काल की बेला में विश्वशांति की मंगलकामना के साथ पार्श्वनाथ भगवान के मस्तक पर शांतिधारा करने का सौभाग्य विजय जैन (जैन हैन्डलूम), प्रदीप जैन (वर्धमान) को प्राप्त हुआ। इसके पूर्व अमृत पावन वर्षायोग समिति के मुख्य सलाहकार डॉ राजीव जैन, स्वागताध्यक्ष अंकित सर्राफ, वरिष्ठ महामंत्री दिनेश जैन डीके, महामंत्री सौरभ जैन सर्वज्ञ, कार्यक्रम संयोजक निशांत जैन डेयरी, नितिन जैन सदर, अतिशय जैन (विश्वपरिवार) ने जलाभिषेक किया। श्रीमति प्रतिभा जैन, डॉ राखी जैन, अंजलि सिंघई, रवि जैन, अनीता जैन, सोनम जैन, पूजा जैन, कु. स्वस्ति जैन ने मंगल आरती कर विधिविधान पूर्वक पूजन संपन्न की। इस अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री अविचलसागरजी महाराज ने कहा कि कहा कि उत्तम तप धर्म अर्थात जो तपा जाये वह तप है। शरीर को सुख सुविधा देना, मन की इच्छापूर्ति करना, प्राणी को अच्छा लगता है किन्तु शरीर को संयत करते हुये मन में उठी इच्छाओं का निरोध करना सम्यक तप है। चौरासी लाख योनियों के बाद मनुष्य जन्म मिलता है। बारह प्रकार के बहिरंग तप और छै प्रकार के अंतरंग तप का पालन करते हुए हमें अपना कल्याण करना चाहिए। इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष शैलेन्द्र जैन प्रेस, सलाहकार डॉ निर्देश जैन, करगुंवा मंत्री संजय सिंघई, आशीष जैन सोनू, जैन महिला समाज की संरक्षिका श्रीमति शीला सिंघई, डॉ रुचि जैन, सारिका सिंघई सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहें। धर्मसभा का संचालन चातुर्मास समिति के महामंत्री सौरभ जैन सर्वज्ञ एवं आभार वरिष्ठ महामंत्री दिनेश जैन डीके ने व्यक्त किया।
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अमृत पावन वर्षायोग समिति के महामंत्री सौरभ जैन सर्वज्ञ ने बताया कि गुरुवार 04 सितम्बर को पर्वाधिराज पर्युषण दसलक्षण पर्व के आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म की पूजा आराधना होगी। स्वागताध्यक्ष अंकित सर्राफ ने बताया कि इस दिन जैन धर्मावलंबी जीवन में विशेष रूप से कुछ नियम, संयम, व्रतों को धारण करके प्रिय वस्तुओं का त्याग करते हैं।